भादानक देश एवं प्राचीन ऐतिहासिक नगर बयाना ( श्रीपथा ) एक अध्ययन ——
भादानक देश का अनेक स्थानों पर उल्लेख है। राजशेखर ने सभी मरुदेश के निवासियो , टक्को और भादाणकों को अपभ्रंश का प्रयोग करने वाला माना है। विजोलिया के संवत 1226 ( ई o सन 1169) के शिलालेख में लिखा है कि विग्रहराज चतुर्थ ने भादान-पति को भी (कान्ति) से रहित कर दिया था। खरतरगच्छपट्टावली के उल्लेखों से, हमें ज्ञात है कि शाकम्भरीश्वर पृथ्वीराज तृतीय ने विक्रम सं० 1234( ई o सन 1177) विक्रम संवत 1239 (ई o सन 1182 )से पूर्व भादानक देश के शक्तिसाली राजा सोहन पाला को बुरी तरह से पराजित किया। स्कन्धपुराण में भादानक देश के एक लक्ष (ग्रामों) का उल्लेख है। शाकम्भरी राज्य सवादलक्ष था। सिद्धसेनसूरि ने भादानक देश की स्थिति कन्नौज और हर्षपुर के बीच में दी है और उसके सिरोह और कम्मरा नाम के स्थानों के नाम दिए हैं। विविधतीर्थ कल्प से हमें ज्ञात है कि सिरोह दौलताबाद और दिल्ली के मार्ग में था और ग्वालियर सरकार के अलापुर नाम के दुर्ग से पर्याप्त उत्तर में था ।
चौहानों ने भादानक देश पर कम से कम दो बार आक्रमण किया। भादानकों पर प्रथम आक्रमण के विषय में हमें चौहान राजा सोमेश्वर के सन् 1169ई0 के ‘बिजौलिया अभिलेख’ से पता चलता है। इस समय भादानक देश पर यदुवंशी राजा कुमार पाल प्रथम अथवा उसके उत्तराधिकारी अजयपाल देवका शासन था । अजयपाल एक शक्तिशाली एवं सम्प्रभुता सम्पन्न शासक था और वह महाराजाधिराज की उपाधि धारण करता था। उनके शासनकाल की जानकारी हमें उनकी महाबन प्रशस्ति (सन् 1150 ई0) से ज्ञात होती है। उनकी महाराजाधिराज की उपाधि से ऐसा प्रतीत होता है कि उनके अधीन अनेक छोटे राजा थे और वे एक विस्तृत क्षेत्र पर शासन करते थे। चौहानों और भादानकों में भीषण युद्ध हुआ परन्तु यह युद्ध निर्णायक साबित न हो सका, हालांकि बिजोलिया अभिलेख में चौहानों ने अपनी विजय का दावा किया है। अजयपाल के बाद हरिपाल भादानक राज्य का उत्तराधिकारी हुआ, एक अभिलेख के अनुसार वह 1170 ई0 में शासन कर रहा था।हरिपाल के पश्चात् राजा साहन पाल देव उनका उत्तराधिकारी हुआ। उसका एक अभिलेख भरतपुर रियासत के आघापुर नामक स्थान से सन 1192 ई.में प्राप्त हुआ है। यदुवंशी राजा साहन पाल के शासन काल में ( ई.1170-1182) पृथ्वीराज चौहान तृतीय के नेतृत्व में दूसरी बार भादानकों पर आक्रमण किया। इस आक्रमण का उल्लेख समकालीन जैन विद्वान् जिनपाल ने 1182 ई0 में लिखित अपने ग्रन्थ ‘खरतारगच्च पत्रावली’ में किया है। जैन विद्वान् के अनुसार भादानकों की शक्तिशाली गज सेना बहादुरी से लड़ी और उसने सेना की प्रशंसा भी की है, वह लिखता है कि भादानकों ने अपनी शक्तिशाली गज सेना के साथ भीषण युद्ध किया। यदुवंशी भादानक बहादुरी से लड़े परन्तु चौहान विजयी रहे। इस हार के कारण भादानकों की शक्ति क्षीण होने लगी।साहन पाल के पश्चात् कुमार पाल द्वितीय शासक हुआ। वह इस राज्य का अन्तिम शासक था। उसके शासनकाल में सन् 1196 ई0 में मौहम्मद गौरी ने बयाना राज्य पर आक्रमण किया और त्रिभुवन नगरी को जीत लिया। इस आक्रमण से भदानक देश का पतन हो गया। मध्य कालीन भारतीया इतिहास में यह क्षेत्र बयाना नाम से विख्यात हुआ और दिल्ली सल्तनत के अधीन रहा।
इन संकेतों के आधार पर हम इससे पूर्व भादानक देश की ठीक अवस्थिति का अनुमान करने का प्रयत्न कर चुके हैं। किन्तु उसका वास्तविक ज्ञान जैन प्रशस्ति संग्रह, खण्ड 2, की अंग्रेजी भूमिका लिखते समय हमें अभी हुआ है। उसके ग्रन्थ 28-29 आदि की रचना कवि तेजपाल द्वारा भादानक देश के सिरिपह नाम के नगर में हुई जहाँ का शासक दाऊदशाह था । तेजपाल का समय सम्वत 1510 के आसपास है। सिरिपह श्रीपथ का अपभ्रष्ट रूप है। यह नगर अब बयाने के नाम से प्रसिद्ध है। यहां वि० सं० 1012 तक सूरसेन ( यदुवंश/ जादुवंश) वंश का राज्य था और बाद में भी सम्भवतः यही वंश या उसकी कोई अन्य शाखा यहां पर राज्य करती रही ।
बयाना के राजा कुंवरपाल के शासनकाल सन्.1196 में मुहम्मद गौरी ने बयाना और त्रिभुवनगिरि पर आधिकार कर लिया और बहाउद्दीन तुगरिल को इसका शासक बनाया। 1255 में बयाने का शासक तुगलुग खां था। सन् 1259 में बलबन ने बयाना और ग्वालियर की जागीरे सुकर को थी। सन् 1398 में तैमूर खां के आक्रमण के बाद बयाना के जागीरदार शम्स खां ओहदी ने वहां अपना स्वतन्त्र राज्य स्थापित किया । खिज्र खां से उसका सम्बन्ध मैत्री पूर्ण था । सन् 1 4 26 में मुबारक शाह सय्यद ने बयाने के मुहम्मद खां ओहदी पर आक्रमण कर उसे पराजित किया, किन्तु मुहम्मद खां ने पुनः बयाने पर अधिकार कर अनेक कारणों से मई, सन् 1427 में खाली कर दिया। कुछ समय बाद औहदी वंश ने अवसर पाकर फिर बयाने को हस्तगत किया । संवत् 1511 में जब तेजपाल ने श्रीपथ (बयाने) में अपने ग्रन्थ लिखे, इसी मुहम्मदखां का पुत्र दाऊद शाह वहां राज्य कर रहा था ।
अतः तेजपाल की प्रशस्तियों और मुसलमानी इतिहासों से यह निश्चित है कि श्रीपथ (बयाने के आस पास का प्रदेश ही भदानक या भयाणअ के नाम से प्रसिद्ध था। यही भयाणअ फारसी लिपि की कृपा से बयाना में परिवर्तित हुया । मुसलमानो से पूर्व बयाना नाम भारतीय साहित्य और इतिहास में नहीं मिलता।
सन्दर्भ
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6-करौली राज्य का इतिहास -लेखक दामोदर लाल गर्ग
7-यदुवंश का इतिहास -लेखक महावीर सिंह यदुवंशी
8-अध्यात्मक ,पुरातत्व एवं प्रकृति की रंगोली करौली -जिला करौली
9-करौली जिले का सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक अध्ययन-लेखक डा0 मोहन लाल गुप्ता
10-वीर-विनोद -लेखक स्यामलदास
11-गज़ेटियर ऑफ ईस्टर्न राजपुताना (भरतपुर ,धौलपुर एवं
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12-सल्तनत काल में हिन्दू-प्रतिरोध -लेखक अशोक कुमार सिंह
13-राजस्थान के प्रमुख दुर्ग -लेखक रतन लाल मिश्र
14-यदुवंश -गंगा सिंह
15-राजस्थान के प्रमुख दुर्ग-डा0 राघवेंद्र सिंह मनोहर
16-तिमनगढ़-दुर्ग ,कला एवं सांस्कृतिक अध्ययन-रामजी लाल कोली
17-भारत के दुर्ग-पंडित छोटे लाल शर्मा
18-राजस्थान के प्राचीन दुर्ग-डा0 मोहन लाल गुप्ता
19-बयाना ऐतिहासिक सर्वेक्षण -दामोदर लाल गर्ग
20-ऐसीइन्ट सिटीज एन्ड टाउन इन राजस्थान-के0 .सी0 जैन
21-बयाना-ऐ कांसेप्ट ऑफ हिस्टोरिकल आर्कियोलॉजी -डा0 राजीव बरगोती
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24-रिपोर्ट आफ ए टूर इन ईस्टर्न राजपुताना ,1883-83 ,पृष्ठ 60-87.–कनिंघम
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28-,राजस्थान थ्रू दी एज -दशरथ शर्मा
29-हिस्ट्री ऑफ जैनिज़्म -कैलाश चन्द जैन ।
30-ताहनगढ़ फोर्ट :एक ऐतिहासिक सर्वेक्षण -डा0 विनोदकुमार सिंह एवं मानवेन्द्र सिंह
31-तवारीख -ए -करौली -मुंशी अली बेग
32-करौली ख्यात एवं पोथी अप्रकाशित ।
33-नियमतुल्ला कृत तवारीखे अफगान ।
34-बी0 एस0 भार्गव कृत राजस्थान का इतिहास ,पृष्ठ ,270 ।
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45-राजस्थान डिस्ट्रिक गजेटियर सवाईमाधोपुर
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47-मरु -भारती ,भाग 40, 1992 ,पेज 28 से 48-बयाना ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक स्थल लेखक डा0 तनुजा सिंह
49-वरदा ,भाग 16 , 1973 ,पेज 10-15 बयाना , प्रकाशक राजस्थान साहित्य समिति
50- शोधक, वॉल्यूम 7, भाग A,1,1978, क्रम संख्या. 19.
लेखक–– डॉ. धीरेन्द्र सिंह जादौन
गांव-लढोता, सासनी
जिला-हाथरस ,उत्तरप्रदेश
प्राचार्य,राजकीय कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय ,सवाईमाधोपुर ,राजस्थान ,322001