मध्यकालीन ऐतिहासिक – सांस्कृतिक दुर्ग बयाना : जदुवंशी क्षत्रियों के गौरव का प्रतीक —

  • बयाना का नाम भारतवर्ष के इतिहास में बड़ा प्रसिद्ध है। यह नाम, राजस्थान के इतिहास में एक बुड़ा निर्णायक युद्ध की स्मृति के साथ जुड़ा हुआ है। बयाना के पास के, खानवा नामक स्थान पर हुए घोर युद्ध में बाबर की विजय ने मुगल साम्राज्य-संस्थापन का पथ प्रशस्त किया था। बयाना की राजपूतों की हार ने बढ़ती हुई राजपूतों की शक्ति को ऐसा धक्का दिया जिससे आगे चलकर वे कभी नहीं संभल सके ।

     जदुवंशी राजा विजयपाल बयाना दुर्ग के निर्माता — 

    मध्य युग में बयाना का किला देश में बड़ा प्रसिद्ध रहा है। उस समय के दुर्गम दुर्गों में इसकी गिनती की जाती थी। इस दुर्ग का निर्माण यादव वंशीय महाराजा विजयपाल ने 1040 ई. में करवाया था। विजयपाल पहले शासक थे जिन्होंने मथुरा से अपनी राजधानी बयाना में स्थानान्तरित की। गजनी की ओर से होने वाले आक्रमणों से जान और माल की सुरक्षा दिनानुदिन कम होती जा रही थी इसलिए विजयपाल ने मैदान पर बनी अपना प्राचीन राजधानी छोड़कर पहाड़ों में बयाना के दुर्ग का निर्माण कर वाया और यहां चले आये ।

    बयाना दुर्ग के विविध नाम —

    बयाना दुर्ग का सर्वाधिक प्रचलित नाम विजयमंदिर गढ़ है किंतु विभिन्न कालों में इसके भिन्न नाम रहे हैं। श्रीकृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध के समय में यह शोणितपुर के नाम से जाना जाता था। अष्टाध्यायी के लेखक तथा पांचवी शताब्दी ईस्वी पूर्व के महान रचनाकार पाणिनी ने बयाना को श्रीप्रस्थ कहा। गुप्त काल में इसे श्रीपथ, संत पाल के काल में संतपुर, बालचंद के काल में रामगढ़, राजा विजयपाल के काल में (ई.1040 एवं उसके आसपास) विजय मंदिर गढ़ तथा विजयचन्द्रगढ़ कहा जाता था। दिल्ली सल्तनत के अंतिम दिनों में यह बयाना कहलाया। कुछ लोग बाणासुर नाम से इसका पुराना नाम बाणपुर तथा बाणपुर से बयाना होना मानते हैं।

    बयाना दुर्ग मे हिन्दू -मुस्लिम स्थापत्य के ऐतिहासिक स्मारक  —

    कीर्तिस्तम्भ —-  

    बयाना की प्राचीनता गुप्त  युग तक जाती है। समुद्र गुप्त के समय का कीर्ति-स्तंभ आज भी खड़ा हुआ किले की प्राचीनता का उद्घोष करता प्रतीत होता है। बहुत संभव है कि बयाना के किले का पुननिर्माण ही यादव राजा विजयपाल ने करवाया हो पर इस विषय पर निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता ।

    बयाना का दुर्ग साधारण ऊंचाई की पहाड़ी श्रेणियों से घिरा हुआ है । वनावलि उन दिनों बड़ी सघन थी जो किले के आसपास के प्रदेशों पर छाई रहती थी। मानी नामक पहाड़ी के शिखर भाग पर बयाना का दुर्ग बना हुआ है। विविध प्रकार के छिद्र तोप, तीरों की मारें श्रादि भी बनी हैं। दीवाल बड़ी मोटी और दृढ़ है। संकड़े और चक्करदार किले का मार्ग दोनों

    ओर से प्राचीरों से घिरा हुआ सुरक्षित है। चक्करदार बना हुआ यह मार्ग किले के मुख्य द्वार तक ले जाता है जहां विविध मोटाई तथा ऊंचाई की विशेष बुर्जी ने मिलकर रक्षा-व्यवस्था बड़ी मजबूत बना रखी है। मुख्य द्वार के सामने का भाग अद्ध चन्द्राकर बुर्ज द्वारा रक्षित है। अन्य बुजें जो मुख्य द्वार के पाश्वं भाग और प्राचीरों के मध्य भाग में निर्मित की गयी हैं विशाल और सुदृढ़ है।

    किले के अन्तःभाग में आवास स्थल हैं, बैरेक हैं, तथा प्राचीन शैली में बने मन्दिर हैं। मुख्य द्वार से किले की दूसरी रक्षा-पंक्ति प्रारम्भ हो जाती है। यह प्राचीर किले के अन्तःभाग को घेर कर ऊपर की ओर उठती जाती है। यहां किले की ऊंचाई प्रायः 500 फीट से ऊपर हो जाती है।

    भीमलाट ——

    समुद्रगुप्त द्वारा खड़ा किया गया यह विजय स्तंभ राजस्थान का पहला विजय स्तंभ है। भीमलाट दूसरा आठ मंजिला विशाल स्तंभ किले में है। यह स्तंभ 26 फीट 3 इंच ऊंचा और 22 फीट 7 इंच चौड़ा है। वारिक विष्णुवर्द्धन पु’डेरीक द्वारा संवत् 428 में किये गये यज्ञ की स्मृति में इस स्तंभ को खड़ा किया गया था । स्तंभ प्राचीन हिन्दू शिल्पकला का बड़ा अच्छा उदाहरण है।

    ऊषा मन्दिर ——

    कन्नौज के राजा महिपाल की रानी चित्रलेखा द्वारा संवत् 1012 में निर्मित उषा मन्दिर किले का बड़ा आकर्षण है। इल्तुतमिश ने इसे मस्जिद में परिणित कर दिया था पर 18 वीं शती में इसे पुनः पूर्व रूप में कर दिया गया। मन्दिर के अन्तःभागों का निर्माण और तक्षण कला से यह मन्दिर हिन्दू और जैन दोनों भवन-निर्माण-कलाओं का सम्मिलित मिश्रण ज्ञात होता है।

    लोदीमीनार —–

    उषा मन्दिर के पास ही लोदी मीनार भी आकर्षक है। 1565 ई. में सराय सादुल्ला मुस्लिम-स्थापत्यत का उदाहरण है। अकबर का स्मारक और जहांगीर दरवाजा किले के अन्य आकर्षण हैं। दाउद खान की मीनार, बयाना के पास इस्लामशाह का दरवाजा, किले में तालाब के पास झाँझरी, मुगल-स्थांपत्य के नमूने हैं

    बयाना के किले में प्राप्त मुख्य शिल्लआधारों का विवरण इस प्रकार है ——–

    स्तम्भयुक्त तोरण  —

    बयाना के किले का द्वार तोरण से सुसज्जित हैं। किले पर चढ़ने के रास्ते बहुत दुर्गम संकड़े और चक्करदार है। रास्तों के के दोनों तरफ चौडी प्राचीरें हैं। मुख्यद्वार पर वे आस पास की प्राचीरों की मोटाई और ऊंचाई देखने योग्य हैं। इसके सामने का भाग अर्धचन्द्राकार बुर्ज से सुरक्षित है। मुख्यद्वार से किले की दूसरी रक्षा पंक्ति प्रारम्भ हो जाती है। इसमें किले की भव्यता के रूप में स्तम्भयुक्त तोरण तीन बनाये गये हैं तथा तीनों को शिल्पी ने बारीकी से खिले हुए पुष्प, बेल आदि उकेर कर बनाया है। उक्त  अलंकरण कार्य अन्य भरतपुर जिले के किले ,राजप्रासादों आदि के स्तम्भ व तोरणद्वार से भिन्न है।

    बयाना अभिलेख —-

     (आठवीं शताब्दी) – यह बयाना से प्राप्त अभिलेख अन्य प्राप्त अभिलेखों से अलग महत्व रखता है जिसकी विशेषता यह है कि तक्षणकार ने शिलापट्ट पर लेखानुसार दृश्यांकित किया है। जिसमें ऊपर, एक ओर जाती हुई चार गौओ को तथा सबसे पोछे एक पुरुषाकृति को उनको ले जाते हुये (हाँकते हुये) उत्कीर्ण किया है। शिलापट्ट को आठवीं शताब्दी का माना जाता है जो कि राजपूताना संग्रहालय अजमेर में प्रदर्शित है।

    बयाना के किले में अलकरण के अतिरिक्त मूर्तिकला के क्षेत्र में भी कार्य होता रहा जिसके प्रमाण यहाँ से प्राप्त मूर्तिशिल्प है जिनका विवरण इस प्रकार है ।

    सरस्वती —–

    सुत्रधार मण्डन ने सरस्वती को “एकवस्त्रा” और “चतुर्हस्ता” के साथ ही शीष पर मुकुट कानों में कुण्डल, और पार्श्व में प्रभामण्डल बनाने का विधान बताया है तथा इन सामान्य लक्षणों के बाद महाविद्या के आयुष अक्ष, अब्ज, वोणा और पुस्तक होते हैं। इसी प्रतिमा लक्षण के अनुरूप बयाना से प्राप्त देव गवाक्ष खण्ड में दो स्तम्भों के मध्य लाल पत्थर पर उत्कीर्ण सरस्वती की प्रतिमा है तथा पैर खण्डित है। सुसज्जित केशबन्ध, हार व हारसूत्र खण्डित वनमाला, कंगन, कटि से नीचे वस्त्रों एवं अलंकरण तथा पादवलय से अलंकृत है। प्रतिमा के दायें नीचे है सरस्वती का वाहन हंस व प्रतिमा के शीर्ष के दोनों ओर भी मयूराकृतियाँ उत्कीर्ण है। उक्त प्रतिमा को ग्यारहवीं शताब्दी का माना जाता है।

    पार्श्वनाथ —–

    उक्त पार्श्वनाथ की प्राप्त प्रतिमाओं में सबसे बड़े आकार की प्रतिमा है जिसका मूर्तन अन्य पार्श्वनाथ की प्रतिमाओं के समान ही है। पदमासन मुद्रा में बैठे पार्श्वनाथ के छल्लेदार बाल तथा मस्तक, ग्रीवा , नेत्र और ऊर्ध्व भाग ध्यानमुद्रा में है। एवं शीष के पीछे सर्पफण निशान  है जिसके सर्पों का मुख खण्डित साथ ही वक्षस्थल पर श्रीवत्स का चिन्ह तथा दोनों हाथ अक के बीच में एक दूसरे पर रखे हैं। पार्श्व नाथ की प्रतिमा के बास पास खण्डित प्रतिमाओं का भी हल्का-हल्काअंकन दिखाई दे रहा है। आसन पर लेखन कार्य भी स्पष्ट हैं।

    परिकर —-

    मुख्य मूर्ति के आस पास सुशोभन-युक्त बलंकरण को परिकर कहते हैं। बयाना 7 कि० मी० पूर्व में ब्रह्मबाद से प्राप्त यह संगमरमर का जैन परिकर है जिसके मध्य में तीर्थकर के दोनों ओर गज आकृतियाँ एवं उसके साथ ही दोनों ओर स्तम्भों के मध्यम पद्‌मासन मुद्रा में तीर्थकर एवं मुख्य प्रतिमा के खाली स्थान को उन्मुख मालावर तया परिकर के मध्य भाग के स्तम्भों में स्थानक तीर्थकर व आस पास अन्य मानवाकृतियाँ देखी जा सकती हैं। पीठिका भाग के मध्य देव आकृति व क्रमशः दोनों ओर गज, सिह सहित देवाकृतियाँ उत्कीर्ण हैं। इस परिकर के तोरण में लिखित आधारों से ज्ञात होता है कि जहाँगीर के शासन काल के 17 वें वर्ष में उक्त परिकर का निर्माण ब्रह्मवाद में हुआ। तत्कालीन समय ब्रह्मवाद मुगल साम्राज्य का ही भाग था। अतः परिकर में मुगल सम्राट का नाम उल्लेखित होना स्वाभाविक है। सूत्रधारों एवं निर्माणकर्ताओं के नाम से संचित बह परिकर है जिसके बायीं ओर “बोहर गौत्र लिखा है।

    इस प्रकार बयाना की राजनैतिक परिस्थितियों में उतार-चढ़ाव तथा यहाँ के किले एवं अभिलेखों अनुसार ऐतिहासिकता का ज्ञान, बयाना की सांस्कृतिक स्थल की पुष्टि कराता है तथा मूर्तिशिल्पआधार प्राप्त होने से धार्मिक भावनाओं का ज्ञान व समृद्धता के अतिरिक मूर्ति शिल्पकला का एक केन्द्र भी रहा होगा ऐसी पुष्टि होती

    बयाना किले पर आक्रमण—–

    राजा विजयपाल ने प्रायः 53 वर्षों तक राज्य किया। ख्यातों के अनुसार इसने कई मुस्लिम हमलों का सफलता पूर्वक मुकाबिला किया, तर अन्त में शिव के मन्दिर में इसने अपने आप को बलिदान कर दिया। 1093 ई. कै आस पास बयाना के दुर्ग पर मुसलमानों का आधिपत्य हो गया था ।

    विजयपाल के पुत्र तिमन पाल ने बयाना से 15  22 दूर पहाड़ी शिखर पर सन् 1158 ई. में एक दूसरा दुर्ग बनवाया और उसका नाम अपने नाम पर तमनगढ़ रखा । यह बड़ा शक्तिशाली शासक था अतः संभव है कि इसने आगे चलकर मुसल मानों से बयाना का दुर्ग पुनः छीन लिया हो। बयाना पर मुस्लिम हमले का बदला लेने के लिए इसने गजनी के कई घोड़े बलपूर्वक उठा लिये ।

     दुर्ग बयाना में यादव वंशीय राजपूत शासकों की सत्ता का अन्त एवं  बयाना  से पलायन ——

    ई. 1192 में मोहम्मद गोरी ने तराइन के मैदान में चौहानों की शक्ति को काफी कम दिया। इस विजय के बाद गौरी अपने गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक को भारत में छोड़कर ग गया। ई. 1195 में मुइज्जुद्दीन पुनः भारत आया। उसने बयाना पर आक्रमण किया। ब राजा कुंवर पाल अपनी राजधानी खाली करके तहनगढ़ के दुर्ग में जाकर बंद हो गया में उसे समर्पण करना पड़ा। उसके बहुत सारे क्षेत्र बहाउद्दीन तुरगिल के अधीन आ दीन ऐबक की मृत्यु के बाद बयाना पर से तुर्कों का आधिपत्य कमजोर हो गया तथा य कड़ बनानी शुरू कर दी किंतु शीघ्र ही इल्तुतमिश ने फिर से उन्हें परास्त किया तथा ब तहनगढ़ पर अधिकार कर लिया। इल्तुतमिश के उत्तराधिकारी कमजोर निकले । इसका लाभ उठा कर मेवात के कोह पाया लोगों ने अपनी सत्ता जमानी आरम्भ कर दी। मेव लोग  मथुरा गुनगांव, अलवर तथा भरतपुर क्षेत्र में रहते थे तथा दिल्ली सलतनत के लिये विद्रोहियों के रूप में  कुख्यात थे। मेवों के राजा खानजादा कहलाते थे। खानजादा वंश की स्थापना बहादुर नाहर ने कीथी। बयाना और तहनगढ़ के यदुवंशी वीर भी अपना राज-पाट खोकर मेवातियों के क्षेत् में जा बसे । पृथ्वीराज चौहान के वशंज भी शासन और सत्ता से च्युत होकर इस क्षेत्र में रहने वाले लोग राठ कहलाते थे। कामां, तिजारा तथा सरहट्टा क्षेत्र में जादौ भाटियों ने जमावाड़ा किया । मेव, खानजादा, राठ, यादव तथा भाटी लोग सम्मिलित रूप से मेवाती कहलाने लगे।ये लोग दिल्ली सल्तनत के प्रबल शत्रु थे। ये लोग सिवालिक, हरियाणा तथा बया न्ली सल्तनत के विरुद्ध गोरिल्ला युद्ध किया करते थे। जब दिल्ली सल्तनत पर न हुआ तो उसने मेवातियों को बुरी तरह से कुचला। खिलजियों के काल में भी सल्तनत के अधीन रहा। बयाना पर मुस्लिम शासक आ जमे । अल्लाऊद्दीन के काजी मुगीसुद्दीन से धार्मिक मामलों पर सलाह-मशवरा किया करता था। तुगलकों  के शासन काल में मेवाती लोग और अधिक बड़ी समस्या बनकर दिल्ली सल्तनत के सामने खड़े हो गए ।

    मुस्लिम आधिपत्य में बयाना के हिन्दू मन्दिरों का विध्वंश —–

    इस  मुस्लिम काल  में मुस्लिम आक्रमण के तहत हिन्दुओं के मन्दिर तथा प्रतिमाऑ को नष्ट किया गया। और यहाँ मुस्लिम साम्राज्य हिन्दू धर्म पर हावी हो गया। इस कारण वश हिन्दू और जैन मन्दिरों को तोड़कर मस्जिद का रूप दिया गया। इसी प्रकार का वि० सं० 1377 का एक अभिलेख प्राप्त हुया जिसमें वि० सं० 1012 में बनवाये गये ऊषा मन्दिर को मस्जिद का रूप कुतुबद्दीन मुवारक द्वारा दिया गया तथा सिकन्दरशाह के बेटे इब्राहिम साह ने ऊषा मन्दिर के निकट ही प्रार्थना के समय (नमाज पढने के समय) की आवाज लगाने के लिये वि० सं० 1574 में मीनार बनवा दी ।इस ऊषा मन्दिर-मस्जिद के शिल्प आधार हिन्दू शिल्पकला युक्त हैं। दूसरे तोरण- युक्त तथा दाबड़ी एवं स्तम्भों में लटकती हुई घण्टियाँ श्रादि उत्कीर्ण हैं तथा स्तम्भ प्राचीन हिन्द वास्तुकला के अनुरूप, जिनके मध्य में एवं ऊपरी ओर पत्थरों पर अलंकरण गोलवृत्ताकार , आयताकार में किया गया है। उक्त मस्जिद को भरतपुर के जाट शासक ने मन्दिर के रूप में परिवर्तित कर दिया। इस मन्दिर के स्तम्भ राजपूतकालीन परन्तु जैन धर्म से अति प्रभावित रहे।

    मुगलों ने बाबर के समय आगे बढ़कर बयाना के दुर्ग को जा घेरा । महाराणा सांगा इधर ही बढ़ा और उन्होंने अपनी अथाह सेना के बल पर बयाना का घेरा उठा बयाना दुर्ग पर अधिकार सुरक्षित कर लिया ।

    इस समय के पश्चात् बयाना के दुर्ग का इतिहास दिल्ली के बादशाहों का इतिहास बन जाता है। जो कोई भी दिल्ली पर शासक रहा उसने बयाना के दुर्ग पर बराबर अपना अधिकार कायम रखा।

    मध्य युग में बयाना के इस दुर्ग का नाम बराबर आता है। मुगलों ने बयाना पर अपना अधिकार अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए यहां सुरक्षा

    व्यवस्था पक्की करली थी।

    बयाना का यह दुर्ग आज प्रायः वीरान हो गया है तथा इसका प्राचीर भाग भी विखंडित सा हो गया है। दिल्ली आगार से समीप होने के कारण बयाना का यह सुदृढ़ दुर्ग बाहरी रक्षा पंक्ति का कार्य किया करता था अतः इसकी सुरक्षा बड़ी आवश्यक मानी जाती थी।

    श्राजकल बयाना भरतपुर जिले का एक प्रसिद्ध स्थान है तथा राजस्थान के प्राचीन ऐतिहासिक स्थानों में इसकी गिनती है।

    सन्दर्भ 

      1-गज़ेटियर ऑफ करौली स्टेट -पेरी -पौलेट ,1874ई0

    2-करौली का इतिहास -लेखक महावीर प्रसाद शर्मा

    3-करौली पोथी जगा स्वर्गीय कुलभान सिंह जी अकोलपुरा

    4-राजपूताने का इतिहास -लेखक जगदीश सिंह गहलोत

    5-राजपुताना का यदुवंशी राज्य करौली -लेखक ठाकुर तेजभान सिंह यदुवंशी

    6-करौली राज्य का इतिहास -लेखक दामोदर लाल गर्ग

    7-यदुवंश का इतिहास -लेखक महावीर सिंह यदुवंशी

    8-अध्यात्मक ,पुरातत्व एवं प्रकृति की रंगोली करौली  -जिला करौली

    9-करौली जिले का सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक अध्ययन-लेखक डा0 मोहन लाल गुप्ता

    10-वीर-विनोद -लेखक स्यामलदास

    11-गज़ेटियर ऑफ ईस्टर्न राजपुताना (भरतपुर ,धौलपुर एवं

    करौली )स्टेट्स  -ड्रेक ब्रोचमन एच0 ई0 ,190

    12-सल्तनत काल में हिन्दू-प्रतिरोध -लेखक अशोक कुमार सिंह

    13-राजस्थान के प्रमुख दुर्ग -लेखक रतन लाल मिश्र

    14-यदुवंश -गंगा सिंह

    15-राजस्थान के प्रमुख दुर्ग-डा0 राघवेंद्र सिंह मनोहर

    16-तिमनगढ़-दुर्ग ,कला एवं सांस्कृतिक अध्ययन-रामजी लाल कोली

    17-भारत के दुर्ग-पंडित छोटे लाल शर्मा

    18-राजस्थान के प्राचीन दुर्ग-डा0 मोहन लाल गुप्ता

    19-बयाना ऐतिहासिक सर्वेक्षण -दामोदर लाल गर्ग

    20-ऐसीइन्ट सिटीज एन्ड टाउन इन राजस्थान-के0 .सी0 जैन

    21-बयाना-ऐ कांसेप्ट ऑफ हिस्टोरिकल आर्कियोलॉजी -डा0 राजीव बरगोती

    22-प्रोटेक्टेड मोनुमेंट्स इन राजस्थान-चंद्रमणि सिंह

    23-आर्कियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया रिपोर्ट भाग ,20.,पृष्ठ न054-60–कनिंघम

    24-रिपोर्ट आफ ए टूर इन ईस्टर्न राजपुताना ,1883-83 ,पृष्ठ 60-87.–कनिंघम

    25-राजस्थान डिस्ट्रिक्ट गैज़ेटर्स -भरतपुर ,पृष्ठ,. 475-477.

    26–राजस्थान का जैन साहित्य 1977

    27-जैसवाल जैन ,एक युग ,एक प्रतीक

    28-,राजस्थान थ्रू दी एज -दशरथ शर्मा

    29-हिस्ट्री ऑफ जैनिज़्म -कैलाश चन्द जैन ।

    30-ताहनगढ़ फोर्ट :एक ऐतिहासिक  सर्वेक्षण -डा0 विनोदकुमार सिंह एवं मानवेन्द्र सिंह

    31-तवारीख -ए -करौली -मुंशी अली बेग

    32-करौली ख्यात एवं पोथी अप्रकाशित ।

    33-नियमतुल्ला कृत तवारीखे अफगान ।

    34-बी0 एस0 भार्गव कृत राजस्थान का इतिहास ,पृष्ठ ,270 ।

    35-मुन्शीज्वालाप्रसाद कृत बकाए राजपुताना ।  36-राजस्थान डिस्ट्रिक्ट गजेटियर पृ 4 76.

    37-इंपीरियल गजेटियर आफ इंडिया , जिल्द 7,  पृष्ठ  137.

    38- दृष्टव्य- अबुल फजल  -आईने -अकबरी , पृष्ठ 191-92.

    लेखक–– डॉ. धीरेन्द्र सिंह जादौन

    गांव-लाढोता, सासनी

    जिला-हाथरस ,उत्तरप्रदेश

    प्राचार्य,राजकीय कन्या स्नातकोत्तर  महाविद्यालय ,सवाईमाधोपुर ,राजस्थान ,322001

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