वासुदेव श्री कृष्ण को यदुवंश विनाश का गांधारी श्राप देते हुए––
महाभारत युद्ध के बाद जब कौरवों का विनाश हो गया था तो गान्धारी बहुत ही कुपित हो चुकी थी । गान्धारी पतिव्रता एवं सत्यवादी थी ।उसने कभी भी पांडवों का बुरा नहीं चाहा लेकिन दुर्योधन के आगे गान्धारी की भी एक नहीं चली ।जब पांडव युद्ध के बाद कौरवों के समस्त योद्धाओं के मारे जाने के बाद गान्धारी से क्षमा याचना करने पहुंचे तो उनके साथ देवकीनंदन भगवान वासुदेव श्री कृष्ण भी गये ।वे तो अन्तर्यामी थे जानते थे कि गान्धारी मुझे ही कौरव -पांडवों के इस महाप्रलयकारी युद्ध महाभारत का उत्तरदायी मानती है श्राप जरूर देगी ।गान्धारी ने पांडवों को तो माफ कर दिया लेकिन यदुकुल शिरोमणि श्री कृष्ण पर भड़क कर कह रही है कि – हे कृष्ण यदि तुम चाहते तो ये युद्ध रुक सकता था।तुम युद्ध का परिणाम भी जानते थे।तुमने जान बूझकर कौरव और पांडवों में युद्ध कर वाया है।आप की ही वजह से मेरे कुल कुरु वंश का नाश हुआ है।सब कुछ सछम होते हुये आप दोनों पक्षों में युद्ध रुकवाने में असमर्थ हुए ।इसी प्रकार अगले 36 वर्षों में आप का यदुवंश पर भी कष्ट आएगा और नष्ट हो जायेगा तथा तुम समर्थ होने पर भी कुछ भी नहीं कर पाओगे।भगवान श्री कृष्ण जी ने हँसते हुए कहा कि देवी मैं ये सब जनता था ।मैं आप का श्राप सहर्ष स्वीकार करता हूँ। जय श्री कृष्णा।।
