Karauli

मथुरा जनपद के विस्मृत जादों स्वतंत्रता संग्राम सैनानी–

मथुरा जनपद के विस्मृत जादों राजपूत स्वतंत्रता सैनानी — 1-रसमई गांव — रसमई गांव ने भी स्वतंत्रता के युद्ध में प्रशंसनीय भाग लिया ।यहां के अधिकांश ठाकुर अच्छे शिक्षित थे और उन्होंने स्वतंत्रता के युद्ध में सहर्ष भाग लिया और क्षत्रियोचित कार्यों से इस गांव के नाम को गौरवान्वित किया।यही नहीं यहां के पुरुषों ने […]

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क्षत्रिय यदुवंश :अखण्ड आर्यावर्त का प्रतीक–

क्षत्रिय यदुवंश : अखण्ड आर्यावर्त का प्रतीक —- ( उत्तर-पूर्वी राजपूताने – मथुरा, करौली , भरतपुर ,अलवर ,धौलपुर के यादव (जादों ), जैसलमेर के यादव भाटी ,जूनागढ़ एवं जामनगर के चुडासमा, सरवैया,रायजादा और जडेजा यादव ,देवगिरि के जाधव यादव ,द्वारसमुद्र तथा विजयनगर के यादव ,  मैसूर के वडियार यादव ,महोबा के बनाफर यादव ) समस्त

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दास्ताने जादों राजपूत रियासत कोटला का इतिहास–

दास्ताने कोटला जादों राजपूत रियासत –— नगर कोटला वसत है, मीन ताल के पास गद्दी राजा सोन की, यदुकुत करत प्रकाश नैक दूर सिरसा नदी, खेरो शांतुन भूप शांतेश्वर महादेव को दर्शन परम अनूप कोटल गांव को सन 1500 में कोटल खां नामक मेवाती ने बसाया था। बयाना के राजा विजयपाल के पुत्र सोनपाल थे

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यदुवंशी जाधव राजपूतों के प्राचीन देवगिरि दुर्ग का इतिहास —

यदुवंशी जाधव राजपूतों के देवगिरि दुर्ग का इतिहास —- यह स्थान महाराष्ट्र के औरंगबाद जिले में, गोदावरी नदी की उत्तरी घाटी में स्थित है। इसका पूर्वानुमान देवगिरि था, किन्तु मुहम्मद बिन तुगलक ने इसका नाम बदलकर दौलताबाद रख दिया। देवगिरि दक्षिण में यादव वंशी राजाओं की समृद्ध राजधानी थी। यादव पहले चालुक्यों के अधीन थे,

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ब्रज जनपद के जादों (प्राचीन यादव ) कुलीन राजवंश का ऐतिहासिक अध्ययन —

ब्रज जनपद के जादों (प्राचीन यादव )कुलीन राजवंश का ऐतिहासिक अध्ययन — मुस्लिम धर्म के प्रसार व प्रचार के समय भारत की पश्चिमोत्तर सीमाओं पर यादव कुलीन परिवार आबाद थे और इन परिवारों ने मुस्लिम साम्राज्यवादियों की प्रगति को दीर्घकाल तक रोकने में सफलता प्राप्त की। अन्त में यदुवंशी भाटी राजपूतों ने सिन्ध अथवा पंजाब

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दास्ताने पूर्व मध्यकालीन जादों राजवंश का बयाना (विजयमन्दिरगढ़ ) किला–

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करौली के जादों राजवंश के पूर्वजों के शौर्य ,वीरता एवं संघर्ष का प्रतीक है मध्यकालीन ऐतिहासिक दुर्ग तिमनगढ़ (ताहनगढ़ )—

करौली जादों राजवंश के पूर्वजों के शौर्य , वीरता एवं संघर्ष का प्रतीक  ऐतिहासिक मध्यकालीन  दुर्ग तिमनगढ़(ताहनगढ़)—- “अपनी बहुमूल्य सांस्कृतिक एवं कलात्मक धरोहर तथा यदुवंशियों के मुगलों से वीरतापूर्ण गौरवशाली  संघर्ष के इतिहास का प्रतीक है तिमनगढ़ /ताहनगढ़ दुर्ग “।इसे तत्कालीन इतिहासकारों एवं लेखकों ने विभिन्न नामों तमनगढ़ , त्रिभुवनगढ़ ,थंनगढ़ से वर्णित किया है

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सांस्कृतिक एवं कलात्मक धरोहर का प्रतीक मध्यकालीन यदुवंशियों का ऐतिहासिक दुर्ग ताहनगढ़ —

सांस्कृतिक एवं कलात्मक धरोहर का प्रतीक  मध्यकालीन यदुवंशियों का ऐतिहासिक दुर्ग ताहनगढ़— बयान से लगभग 23 कि.मी दक्षिण में एक उन्नत पर्वतशिखर पर मध्यकाल प्रसिद्ध दुर्ग ताहनगढ़  (तिमनगढ़) या त्रिभुवनगढ़ स्थित है। दुर्गम पर्वतमालाओं से आवृत , वन सम्पदा  से परिपूर्ण तथा नैसर्गिक सौन्दर्य से सुशोभित इस दुर्भेद्य दुर्ग की अपनी अदभुत निराली ही  शान

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यदुकुल शिरोमणि श्रीकृष्ण ,उनका समय एवं जदुवंशियों के विनाश का ऐतिहासिक अध्ययन–

यदुकुल शिरोमणि योगीश्, उनका समय एवं जदुवंशियों का विनाश— ब्रज या शूरसेन जनपद के इतिहास में श्रीकृष्ण का समय बड़े महत्व का है। इसी समय प्रजातंत्र और नृपतंत्र के बीच कठोर संघर्ष हुए, मगध-राज्य की शक्ति का विस्तार हुआ और भारत का वह महाभीषण संग्राम हुआ, जिसे महाभारत युद्ध कहते हैं। इन राजनैतिक हलचलों के

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श्री कृष्ण के वंशज यदुवंशी जादों क्षत्रियों के प्राचीन ऐतिहासिक नगर महावन (पौराणिक गोकुल ) का शोध–

श्री कृष्ण जी के वंशज यदुवंशी जादों क्षत्रियों के प्राचीन ऐतिहासिक नगर महावन (पौराणिक गोकुल) का शोध– यमुना पार मथुरा से 14 किमी दूर नीचे की और बहने वाली यमुना की धारा के किनारे पर बसे हुए वर्तमान गोकुल से 4 किलोमीटर आगे, मथुरा से सादाबाद सड़क के सहारे ऊंचे टीले पर सन्निविष्ट महाबन ऐतिहासिक

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